Sunday, 1 March 2015

नीला आकाश

नीला आकाश धरा के ऊपर झूलता
शायद किसी मज़बूत रस्सी से लटका
गोल गोल चाँद आकाश में अटका
धरा नीचे अपनी धूरी पर घूमती
सूरज की हर किरण और
बारिश की हर बूँद को चूमती
बीच में है इंसान जो सोंचता की वोह
दुनिया चलाता है
पर वो यह भूल जाता है
की उससे बड़ा भी कोई है

जो हर इंसान को बनाता है

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